हमारे राजपुरोहित समाज में स्वार्थपरता अधिक व् सेवा का भाव कम होता जा रहा हें ! जेसे देश सेवा - समाज सेवा - धर्म सेवा - भगत्व सेवा आदि किसी भी नाम पर आज समाज का बन्धु ढ़ोंगी होता जा रहा हे / इसलिए सत्यानुराग के बदले मिथ्यानुराग बढ़ चला हॆ ! अफसर हो या नेता - व्यापारी हो या मजदूर - जमींदार हो या किसान सभी जगह अपनी ही और नजर होती हे ! सभी लेना चाहते हें - देना कोई नही चाहता ! मगर आज राजपुरोहित समाज में मंदीर हो या समाज का भवन सभी जगह सेवा के नाम पर अभिनय चल रहा हें सच्चा अनुराग नही हे ! दक्षिन भारत के सभी शहरों मे नजर डालें तो पता चलेगा की चेन्नई - तिरुपुर - कोयम्बतूर - बेंगलोर - मुम्बई आदि महानगरो में एक नजर डाली जाएँ तो हम पायंगे की अपने ही समाज के बन्धुओ द्वारा राजपुरोहित समाज के भवनों में अपनी -अपनी राजनीति चला रहे हेँ ! जिससे समाज में दूरियां पेंदा होती हे समाज संगठित नही होगा ! अपने समाज में ऐसे बहुत बन्धु ह़े जो सच्चे मन से समाज सेवा तो नही करते लेकिन बाधा जरुर े डालते ह़े ! क्योकि अर्न्तात्मा से होने वाला कार्य ही सच्ची सेवा का कार्य होता ह़े /और वह ईश्वरको समर्पित होता हे ! दिखावे की सेवा देश एंव समाज का भला नहीं कर सकती ! जो सच्चा देश एंव समाज प्रेमी हें ' जिनका ह्र्दय देश व् समाज की दुर्दशा पर रोता हें और वे जिस किसी उपाय से देश व् समाज का कल्याण करते रहते हें ! उसी रास्ते उसमें बिना स्वार्थ खप जाते हें ! सच्चा सेवाभावी किसी भी भय या प्रलोभन से अपने सत्य पथ से उसी रास्ते से नहीं डिग सकता !
सेवा भाव उसी मनुष्य मै होते हें जिसका जीवन संस्कारो एवं आदर्शता की महान नींव पर टिका हुआ रहता हें ! आओ हम पहले सदगुणों एवं महान उन्से चरित्र का विकास करे ! और राष्ट्र वं समाज में सच्ची सेवा भावना के साथ नि:स्वार्थ सेवा का संकल्प लें ! सम्पादकीय - राजपुरोहित दर्पण - पीरसिंह राजपुरोहित 09016453961
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