गुरु बिन कोन बतावे बात


RAJPUROHIT DARPAN


peersingh rajpurohit kah rahe hein ki



गुरु बिन कोन बतावे बात"हाथ जोडकर मस्तक नवाकर वन्दना करना >हाथ क्रिया शक्ति का प्रतीकहै । हाथ जोड़ने का तात्पर्यहै कि मैँअपने इन हाथोँ से सत्कर्म करुँगा।मस्तक नवाने का अर्थ है कि मैँ अपनी बुद्धि शक्ति को हे प्रभू आपको अर्पित करता हूँ ।वन्दना करने का अभिप्राय हैकि अपनी क्रिया शक्ति को औरबुद्धि शक्ति को श्रीभगवान को अर्पित करना ।श्री भगवान को वन्दन करने से पाप ताप का नाश होता है। निर्भयता प्राप्त करने के लिए प्रेम पूर्वक भगवान श्रीकृष्ण , श्रीराम या भगवान आशुतोष शिव की वन्दनाकरनी है । प्रभू दयानिधि है। केवल वाणी और शरीर से ही नहीँ, बल्कि हृदय से भी भगवान की वन्दना करना चाहिए। हृदय से वन्दना करने से प्रभू के साथ ब्रह्म सम्बन्ध होता है । प्रेम सेपरमात्मा को प्रणाम करने सेप्रभू प्रसन्न होँगे । प्रभू के मुझ पर अनन्त उपकार हैँ । बोलने को जीभ , सुनने को कान , देखने को आँख, विचार करने हेतु मन, बुद्धि एवं विचारशक्ति परमात्मा ने ही दी है । ईश्वर के उपकारोँ को याद करते हुए यह कहे कि हे प्रभू मैँ आपका ऋणी हूँ । हेप्रभू आपकी कृपा से मैँ सुखी हूँ।मेरे पाप अनन्त हैँ , परन्तु हे नाथ आपकी कृपा भी अनन्त है ।इसप्रकार वन्दन करने से अभिमान नष्ट होता है ।जीभ से भगवान के पवित्र नामोँ संर्कीतन करेँ , आँखोसे भगवान की मंगलमय दिव्य झाँकी सर्वत् का दर्शन करेँ, प्रभू की दिव्य लीलाओका श्रवण करेँ , मन मेँ किसीकेप्रति कुविचार का चिन्तन न करेँ , बुद्धि से किसी का अहित न हो ऐसा कार्य करेँ । तभी प्रभू प्रसन्न होग

by jagdish rajpurohit

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