फिल्मी दुनिया के उभरते सितारे राज के. पुरोहित
'रहनुमाओं की अदाओं पे फिदा है दुनिया, इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारो। कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।Ó हिन्दी कवि दुष्यंत कुमार की इन्हीं चंद पंक्तियों में जीवन की सच्चाई तलाशने के लिए जिन्दगी से जद्दोजहद करते हुए आगे बढ़कर एक मुकाम पाया बहु भाषी फिल्मी दर्शकों के चहेते अभिनेता राज. के पुरोहित ने।
दिल की सुनी, सफलता मिली
प्रशंसकों के साथ खुद राज मानते हैं कि राह आसान नहीं थी, पर जज्बा था, दिल गवाही दे रहा था कि हां, तुम्हारे भीतर एक कलाकार छिपा है, तुम वह सब कर सकते हो जो अन्य कलाकार करते हैं, बस यहीं से इसी दिल से निकली छोटी सी किन्तु दमदार आवाज ने उनकी जिन्दगी की दिशा व दशा दोनों ही बदल दी और वे चल दिए एक नई दिशा में नया अध्याय लिखने। राजस्थान की धरा ने नामी गिरामी कलाकार भी दिए हैं जिन्होंने मरुधरा का नाम ऊंचा किया है। उन्हीं में से एक है गुदड़ी के लाल राजस्थान की धरा धरती के राज के पुरोहित। पूरा किया दादा का सपना
फिल्मी क्षेत्र में करियर बनाना कोई हंसी खेल नहीं है। और यह तब तो और भी मुश्किल हो जाता है जब इस क्षेत्र में कोई गोड फादर ना हो। लेकिन इस धारणा को बदलकर एक नया मुकाम पाया आरके पुरोहित ने। हिन्दी, कन्नड़, तमिल समेत कई फिल्मों में दमदार अभिनय कर चुके राज आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनके प्रशंसकों ने उनके धारावाहिकों से लेकर फिल्मों तक में उनके काम की तारीफ कर उनका मनोबल बढ़ाया है। राजस्थानी परिवार से होने के चलते शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि किस्मत उनको परंपरागत व्यवसाय से दूर फिल्मी दुनिया में ले जाएगी।
उलझन थी मन में
'संभल-संभल के बहुत पांव धर रहा हूं मैं, पहाड़ी ढाल से जैसे उतर रहा हूं मैं,
कदम कदम पर मुझे टोकता है दिल ऐसे, गुनाह कोई बड़ा जैसे कर रहा हूं मैं...Ó
करयिर के शुरुआती दिनों में कुछ ऐसी ही मन स्थिति थी राज की। परिवार का फिल्मी दुनिया से कोई कनेक्शन नहीं था इसलिए सोचा कि लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा, सफलता मिलेगी या नहीं...आदि प्रश्नों के उत्तर खोजने की उधेड़बुन में पुरोहित इतने आगे निकल गए कि अब उनको ये सारे प्रश्न बेमानी लगते हैं। आज फिल्म इंडस्ट्री में उनकी खास पहचान है।
किरदार में ढल जाते हैं
जिन दर्शकों ने फिल्म में राज का अभिनय देखा है। वे एक ही बात कहते हैं ' राज किरदार निभाते नहीं बल्कि किरदार को जीते हैं। किरदार के पात्र में इतना डूब जाते हैं कि लोग उनकी तुलना किसी दिग्गज कलाकार से किए बिना नहीं रह सकते।
समाज सेवा में अग्रणी
लोग अक्सर बुलंदी पर चढऩे के बाद अपने आसपास के माहौल व पुरानी चीजों को भूल जाया करते हैं। लेकिन राज इसमें अपवाद हैं। वे आज भी शहर हो या गांव देश हो या परदेश हर जगह समाज सेवा के कार्य से जुड़े रहते हैं। वे मिलनसार व उदार है।
....
दो संस्कृतियों का साथ
राज का परिवार वैसे है तो राजस्थानी पृष्ठभूमि से लेकिन कन्नड़ परिवेश में पलबढ़कर राज ने यहां की संस्कृति, यहां के लोगों को भी नजदीक से देखा व समझा है। शायद यही कारण है कि वे आज जितना हिन्दी फिल्मों के दर्शकों में प्रिय है उतने की कन्नड फिल्मों के दर्शकों में भी। उन्होंने कभी अहसास ही नहीं होने दिया कि वे हिन्दी मूल के कलाकार हैं।
RAJK PUROHIT(Actor)
'रहनुमाओं की अदाओं पे फिदा है दुनिया, इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारो। कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।Ó हिन्दी कवि दुष्यंत कुमार की इन्हीं चंद पंक्तियों में जीवन की सच्चाई तलाशने के लिए जिन्दगी से जद्दोजहद करते हुए आगे बढ़कर एक मुकाम पाया बहु भाषी फिल्मी दर्शकों के चहेते अभिनेता राज. के पुरोहित ने।
दिल की सुनी, सफलता मिली
प्रशंसकों के साथ खुद राज मानते हैं कि राह आसान नहीं थी, पर जज्बा था, दिल गवाही दे रहा था कि हां, तुम्हारे भीतर एक कलाकार छिपा है, तुम वह सब कर सकते हो जो अन्य कलाकार करते हैं, बस यहीं से इसी दिल से निकली छोटी सी किन्तु दमदार आवाज ने उनकी जिन्दगी की दिशा व दशा दोनों ही बदल दी और वे चल दिए एक नई दिशा में नया अध्याय लिखने। राजस्थान की धरा ने नामी गिरामी कलाकार भी दिए हैं जिन्होंने मरुधरा का नाम ऊंचा किया है। उन्हीं में से एक है गुदड़ी के लाल राजस्थान की धरा धरती के राज के पुरोहित। पूरा किया दादा का सपना
फिल्मी क्षेत्र में करियर बनाना कोई हंसी खेल नहीं है। और यह तब तो और भी मुश्किल हो जाता है जब इस क्षेत्र में कोई गोड फादर ना हो। लेकिन इस धारणा को बदलकर एक नया मुकाम पाया आरके पुरोहित ने। हिन्दी, कन्नड़, तमिल समेत कई फिल्मों में दमदार अभिनय कर चुके राज आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनके प्रशंसकों ने उनके धारावाहिकों से लेकर फिल्मों तक में उनके काम की तारीफ कर उनका मनोबल बढ़ाया है। राजस्थानी परिवार से होने के चलते शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि किस्मत उनको परंपरागत व्यवसाय से दूर फिल्मी दुनिया में ले जाएगी।
उलझन थी मन में
'संभल-संभल के बहुत पांव धर रहा हूं मैं, पहाड़ी ढाल से जैसे उतर रहा हूं मैं,
कदम कदम पर मुझे टोकता है दिल ऐसे, गुनाह कोई बड़ा जैसे कर रहा हूं मैं...Ó
करयिर के शुरुआती दिनों में कुछ ऐसी ही मन स्थिति थी राज की। परिवार का फिल्मी दुनिया से कोई कनेक्शन नहीं था इसलिए सोचा कि लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा, सफलता मिलेगी या नहीं...आदि प्रश्नों के उत्तर खोजने की उधेड़बुन में पुरोहित इतने आगे निकल गए कि अब उनको ये सारे प्रश्न बेमानी लगते हैं। आज फिल्म इंडस्ट्री में उनकी खास पहचान है।
किरदार में ढल जाते हैं
जिन दर्शकों ने फिल्म में राज का अभिनय देखा है। वे एक ही बात कहते हैं ' राज किरदार निभाते नहीं बल्कि किरदार को जीते हैं। किरदार के पात्र में इतना डूब जाते हैं कि लोग उनकी तुलना किसी दिग्गज कलाकार से किए बिना नहीं रह सकते।
समाज सेवा में अग्रणी
लोग अक्सर बुलंदी पर चढऩे के बाद अपने आसपास के माहौल व पुरानी चीजों को भूल जाया करते हैं। लेकिन राज इसमें अपवाद हैं। वे आज भी शहर हो या गांव देश हो या परदेश हर जगह समाज सेवा के कार्य से जुड़े रहते हैं। वे मिलनसार व उदार है।
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दो संस्कृतियों का साथ
राज का परिवार वैसे है तो राजस्थानी पृष्ठभूमि से लेकिन कन्नड़ परिवेश में पलबढ़कर राज ने यहां की संस्कृति, यहां के लोगों को भी नजदीक से देखा व समझा है। शायद यही कारण है कि वे आज जितना हिन्दी फिल्मों के दर्शकों में प्रिय है उतने की कन्नड फिल्मों के दर्शकों में भी। उन्होंने कभी अहसास ही नहीं होने दिया कि वे हिन्दी मूल के कलाकार हैं।
RAJK PUROHIT(Actor)
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